आज हम ‘‘जेगंजेरबू‘‘ से रवाना होकर पुनः दरचन पहुंचना है, जिसकी दूरी यहां से 12 कि.मी. है। रास्ता पहाड़ी होने के बावजूद अपेक्षाकृत सपाट है। सबेरे 7.00 बजे नित्यक्रिया से निवृत हो तैयार हो गया चाय पिया। आधा घंटा बाद सभी यात्री दरचन के लिए रवाना हुए। थोड़ी देर पैदल चलने के बाद घोड़े से यात्रा जारी रखा। कल के यात्रा के रास्ता के अपेक्षा आज के यात्रा का रास्ता आसान था, सभी यात्री (पैदल वाले सहित) लगातार बढ़े जा रहे थे। लगभग 5-6 कि.मी. सफर करने के बाद थोड़ा विश्राम किए उसके बाद पुनः आगे बढ़े। 10.00 बजे सुबह हम लोग दरचन पहुंच गए। गेस्ट हाऊस जाकर कैलाश परिक्रमा में जाने के पूर्व जिस कमरे में रूके थे उसी कमरे में आए। पोनी एवं पोर्टर के लिए पारिश्रमिक का अग्रिम भुगतान तकलाकोट में ही किया जा चूका था फिर भी सकुशल कैलाश परिक्रमा सम्पन्न होने से तथा पोर्टर द्वारा ‘‘गौरीकुण्ड‘‘ जाकर जल लाने के कारण उन्हे पुरस्कार स्वरूप कुछ युवान और दिया। पी.सी.ओ. जाकर ‘‘कैलाश परिक्रमा‘‘ सकुशल सम्पन्न होने की जानकारी घर में दिया उधर से बताया गया कि आज सूर्यग्रहण है। विगत तीन दिन से नहाया नही था इसलिए गेस्ट हाऊस कैम्पस के नल में जाकर स्नान किया। उक्त नल में पहाड़ से बर्फ पिघलकर जो पानी झरने के रूप ले लिया था उसी में से पानी लाया जा रहा था जिसके कारण पानी अत्यधिक ठण्डा था फिर भी स्नान करने से बहुत अच्छा लगा।
दोपहर भोजन तैयार होने की सूचना मिलने पर भोजन करने गया। भोजन में चांवल, दाल, पापड़ लिया। भोजन के दौरान ही पास ही स्थित ‘‘अष्टपद‘‘ जाने की चर्चा हुई, मैं भी वहां जाने के लिए सहमति दिया। दोपहर 3.00 बजे दो जीप (लेण्ड क्रुजर) द्वारा लगभग सभी यात्री ‘‘अष्टपद‘‘के लिए रवाना हुए। ‘‘अष्टपद‘‘ दरचन से 5. कि.मी. दूरी पर है किन्तु पहाड़ी रास्ता के कारण जाने में कुछ समय लगा। ‘‘अष्टपद‘‘ पहुंचने के बाद जीप से उतरकर पहाड़ी झरना (नदी) पार कर एक पहाड़ी के ऊपर सभी यात्री पहुंचे। वहां से कैलाश पर्वत के दक्षिणी हिस्सा का दर्शन होता है। कल ‘‘डोरापुक‘‘ में कैलाश पर्वत के उत्तरी हिस्से का नजदीक से दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ आज दक्षिणी हिस्से का नजदीक से दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ। किन्तु कैलाश पर्वत के कल दर्शन के समय पूरा पर्वत हिमाच्छादित न होकर शिखर के नीचे हिस्से मे काले ग्रेनाइट के जैसे पत्थर दिखाई दे रहे थे। लेकिन आज के दर्शन में सपूर्ण पर्वत हिमाच्छादित दिखाई दिया। आज कैलाश पर्वत का दर्शन करते समय यह महसूस हुआ कि साक्षात शिवजी के सिर के मस्तक पर त्रिनेत्र, जटा एवं जटा के बीच से बहती हुई अविरल गंगा की धारा दिखाई दिया। सभी यात्री भी इस वक्त साक्षात शिवजी स्वरूप को महसूस किए।
अद्भुत चीज यह दिखा कि कैलाश पर्वत सम्पूर्ण हिमाच्छादित है लेकिन उसके साथ जुड़े हुए चारो तरफ के किसी भी पर्वत में बर्फ का नामोनिशान नही हैं किन्तु उसके बाद वाले सभी पर्वतों में बर्फ है। जहां से हम लोग खड़े होकर कैलाश पर्वत का दर्शन कर रहे है हमारे बाई ओर पर्वत जो बिना बर्फ के पत्थर का है के बारे में बताया गया कि जैन धर्मावालंम्बियों के प्रथम तीर्थकर भगवान महावीर शिवधाम कैलाश दर्शन को आए थे तथा इस बांयी पर्वत में आठ पग (पद) आगे चलकर कैलाश में समाहित हो गई इसीलिए इस स्थान को ‘‘अष्टपद‘‘ कहते है। वही पर एक दूसरी पहाड़ी में एक मकान दिखा जहां श्री हरन, श्री राजनारायण गए बाद में मैं भी गया। उस मकान को बौद्धाभिक्षुओं का स्थान गोम्फा बताया गया जहां आज भी बौद्ध लामा रहकर तपस्या करते है। थोड़ी देर और रूककर हम लोग दरचन गेस्ट हाऊस वापस आए।
गेस्ट हाऊस से ‘‘अष्टपद‘‘ आने-जाने का एक यात्री का किराया 80 युवान (चीनी मुद्रा) जीप वाले को दिया गया। दरचन के बाजार घुमने गए जहां से मानसरोवर के मोती की माला व स्फटिक माला खरीदे। प्रायः सभी यात्री अपने-अपने पसंद के अनुसार यहां खरीदारी किए। रात्रि का भोजन आज पराठा-सब्जी तैयार किया गया था, सभी यात्री एक साथ भोजन किए। भोजनोपंरात गेस्ट हाऊस के गेट के पास ही स्थित पी.सी.ओ. से श्री रविन्द्र चैबे जी से बात किया एवं उन्हे कैलाश परिक्रमा सकुशलता पूर्वक सम्पन्न होने की जानकारी दिया। प्रकाश व्यवस्था जनरेटर द्वारा किया जा रहा था। इसलिए कल के यात्रा के तैयारी के हिसाब से लगेज रात में पैक कर सो गया।
क्रमश: .....
डी.पी.तिवारी,
रायपुर
दोपहर भोजन तैयार होने की सूचना मिलने पर भोजन करने गया। भोजन में चांवल, दाल, पापड़ लिया। भोजन के दौरान ही पास ही स्थित ‘‘अष्टपद‘‘ जाने की चर्चा हुई, मैं भी वहां जाने के लिए सहमति दिया। दोपहर 3.00 बजे दो जीप (लेण्ड क्रुजर) द्वारा लगभग सभी यात्री ‘‘अष्टपद‘‘के लिए रवाना हुए। ‘‘अष्टपद‘‘ दरचन से 5. कि.मी. दूरी पर है किन्तु पहाड़ी रास्ता के कारण जाने में कुछ समय लगा। ‘‘अष्टपद‘‘ पहुंचने के बाद जीप से उतरकर पहाड़ी झरना (नदी) पार कर एक पहाड़ी के ऊपर सभी यात्री पहुंचे। वहां से कैलाश पर्वत के दक्षिणी हिस्सा का दर्शन होता है। कल ‘‘डोरापुक‘‘ में कैलाश पर्वत के उत्तरी हिस्से का नजदीक से दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ आज दक्षिणी हिस्से का नजदीक से दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ। किन्तु कैलाश पर्वत के कल दर्शन के समय पूरा पर्वत हिमाच्छादित न होकर शिखर के नीचे हिस्से मे काले ग्रेनाइट के जैसे पत्थर दिखाई दे रहे थे। लेकिन आज के दर्शन में सपूर्ण पर्वत हिमाच्छादित दिखाई दिया। आज कैलाश पर्वत का दर्शन करते समय यह महसूस हुआ कि साक्षात शिवजी के सिर के मस्तक पर त्रिनेत्र, जटा एवं जटा के बीच से बहती हुई अविरल गंगा की धारा दिखाई दिया। सभी यात्री भी इस वक्त साक्षात शिवजी स्वरूप को महसूस किए।
अद्भुत चीज यह दिखा कि कैलाश पर्वत सम्पूर्ण हिमाच्छादित है लेकिन उसके साथ जुड़े हुए चारो तरफ के किसी भी पर्वत में बर्फ का नामोनिशान नही हैं किन्तु उसके बाद वाले सभी पर्वतों में बर्फ है। जहां से हम लोग खड़े होकर कैलाश पर्वत का दर्शन कर रहे है हमारे बाई ओर पर्वत जो बिना बर्फ के पत्थर का है के बारे में बताया गया कि जैन धर्मावालंम्बियों के प्रथम तीर्थकर भगवान महावीर शिवधाम कैलाश दर्शन को आए थे तथा इस बांयी पर्वत में आठ पग (पद) आगे चलकर कैलाश में समाहित हो गई इसीलिए इस स्थान को ‘‘अष्टपद‘‘ कहते है। वही पर एक दूसरी पहाड़ी में एक मकान दिखा जहां श्री हरन, श्री राजनारायण गए बाद में मैं भी गया। उस मकान को बौद्धाभिक्षुओं का स्थान गोम्फा बताया गया जहां आज भी बौद्ध लामा रहकर तपस्या करते है। थोड़ी देर और रूककर हम लोग दरचन गेस्ट हाऊस वापस आए।
गेस्ट हाऊस से ‘‘अष्टपद‘‘ आने-जाने का एक यात्री का किराया 80 युवान (चीनी मुद्रा) जीप वाले को दिया गया। दरचन के बाजार घुमने गए जहां से मानसरोवर के मोती की माला व स्फटिक माला खरीदे। प्रायः सभी यात्री अपने-अपने पसंद के अनुसार यहां खरीदारी किए। रात्रि का भोजन आज पराठा-सब्जी तैयार किया गया था, सभी यात्री एक साथ भोजन किए। भोजनोपंरात गेस्ट हाऊस के गेट के पास ही स्थित पी.सी.ओ. से श्री रविन्द्र चैबे जी से बात किया एवं उन्हे कैलाश परिक्रमा सकुशलता पूर्वक सम्पन्न होने की जानकारी दिया। प्रकाश व्यवस्था जनरेटर द्वारा किया जा रहा था। इसलिए कल के यात्रा के तैयारी के हिसाब से लगेज रात में पैक कर सो गया।
क्रमश: .....
डी.पी.तिवारी,
रायपुर
very nice photos and account of your journey .
ReplyDeleteAgle post ka intzaar hai.
ReplyDeleteFirst tirthankar of Jains was 1008 shri Rishabh Dev/ Adinath ji who came to Ashtapad for tap & got nirwana from ASHTAPAD. 1008 Lord Mahaveer is the last (24th) tirthankar who got nirvana just 2548 years ago from today. ie nearly 527 BC where as Shri Rishabh Nath ji were father of Bharat & his name appears in hindu puransas well.
ReplyDeleteRajendra Jain
+918800922776
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ReplyDeleteAlso visit my web blog; fatty liver chinese medicine