सत्रहवें दिन की यात्रा मानसरोवर में पवित्र स्‍नान : 04.08.2008

04.08.2008 श्रावण सुदी 3 सोमवार

Photobucketआज हम लोग 2.30 बजे रात को ही उठ गए। कल रात के ठण्ड को देखते हुए टार्च लेकर आज ज्यादा गरम कपड़े तथा रजाई लेकर गेस्ट हाऊस के बाहर गोम्फा के पास मानसरोवर के किनारे जाकर बैठ गए। रात का मौसम कल रात जैसा ही है। इसके बावजूद भी आज ज्यादा यात्री यहां पर आ गए। लगभग 3.00 बजे आसमान से दो सितारे नीचे की ओर टिमटिमाते हुए आते दिखे तथा मानसरोवार में समाते हुए मेरे सहित सभी लोगों ने इस अद्भुत नजारे को देखे। उसके बाद में 4.30 तक उसी दृश्य को देखने की प्रतीक्षा किया किन्तु पुनः उक्त दृश्य देखेने को नही मिला, मैं वापस कमरे में आकर सो गया।


चूंकि आज भी हमें यही रूकना है इसलिए आराम से सोकर उठा, चाय नाश्ता किया। आज श्रावण सोमवार है इसलिए मानसरोवर से जल भरने के लिए उपयुक्त दिन मानकर जरीकेन/बाटल एवं पूजा सामग्री साथ में लेकर स्नान करने मानसरोवार की ओर गया। मानसरोवर के किनारे-किनारे मैं, राजनारायणजी, शास्त्रीजी (बंगलोर) ईश्वर भट्टजी (मंगलोर) बहुत दूर तक गए। तब तक धूप तेज हो गया, इसलिए वापस आते हुए किनारे रूककर स्नान की तैयारी किए। मानसरोवर में घर के सभी लोगो के नाम से डुबकी लगाया। मानसरोवर के जल के अन्दर से छोटे-छोटे पत्थर एकत्र किया स्नान कर पूजन नमन किया, जरीकेन/बाटल में जल भरा, मानसरोवर में स्नान करते समय कैलाश पर्वत एवं ओंकार मांधाता पर्वत के दर्शन किया।

(राजनारायणजी, शास्त्रीजी, भट्टजी और मैं) हम चारों स्नान कर जल भरने के बाद किनारे में एक स्थान पर बैठकर मानसरोवर ले जाने हेतु एकत्र जल का पूजन किए। पूजन पश्चात वापस गेस्ट हाऊस की ओर रवाना हुए।

मानसरोवर को स्वच्छ रखने के उद्देश्य से गन्दे सामान, प्लास्टिक आदि उसमें नहीं डाला जाता, उसी प्रकार साबुन का उपयोग नहाने, कपड़े धोने के लए नही किया जाता किन्तु आज स्नान करते समय श्री ईश्वर भट्ट (मंगलोर) द्वारा साबुन लगाकर नहाया गया, साबुन लगाने के बाद जैसे ही श्री भट्ट मानसरोवर में डुबकी लगाए उसके कुछ देर बाद उन्हे ध्यान आया कि उनका चश्मा मानसरोवर के पानी में ही गिर गया। काफी प्रयासकर खोजने के बाद भी

अन्ततः उनका चश्मा नहीं मिला, बिना चश्मा के उन्हें आगे गेस्ट हाऊस पहुंचने में असुविधा हुई तब श्री राजनारायण जी जो कि एक अतिरिक्त चश्मा रखे हुए थे उन्होने उन्हें दे दिया, तब वे कुछ राहत महसूस किए। इस घटना को सुधीपाठक जिस दृष्टि से देखे वह वैसा ही है ‘‘अर्थात चश्मा पहने हुए साबुन के उपयोग करने एवं पानी में डुबकी लगाने से साबुन के झाग की चिकनाई के वजह से चश्मा पानी में गिर गया, अथवा मानसरोवर के जल की शुद्धता एवं पवित्रता बनाए रखने के उद्देश्य से साबुन का उपयोग वर्जित होने के बावजुद जानबुझकर चाहे अनजाने में ही साबुन का उपयोग किया गया, जिससे तत्काल प्रताड़ना स्वरूप चश्मा मानसरोवर में ही खो गया।‘‘गेस्ट हाऊस पहुंचने के बाद 11.30 बजे दोपहर का भोजन किया एवं कल की यात्रा की तैयारी करते हुए लगेज पैक किया। दोपहर बाद मौसम में अचानक परिवर्तन हुआ व पानी गिरना प्रारंभ हो गया जो यात्री बाद में स्नान करने गए उन्हें जल्दी वापस आना पड़ा थोड़ी देर बाद बर्फ भी गिरना प्रारंभ हो गया, वातावरण एकदम ठण्डा हो गया सभी यात्री अपने-अपने कमरे में बैठे रहे। हमारे कक्ष में श्री ईश्वर भट्ट एवं बंगलोर के शास्त्री जी के आने के बाद हमारे द्वारा मानसरोवर से लाए गए पत्थर के टुकड़ों का श्री भट्ट द्वारा परीक्षण किया जाता रहा, शास्त्रीजी द्वारा जानकारी दी गई कि भट्ट जी पत्थर, रत्न एवं ज्योतिष के जानकार है। श्री भट्टजी द्वारा अपने पास रखे हुए पत्थर परखने का यंत्र (पतले धागे में बंधे हुए लोहे का गुटका) निकालकर यात्रियों के द्वारा लाए गए पत्थर का परीक्षण किया गया। उनके द्वारा धनात्मक पत्थर पास में रखकर शेष पत्थर फेंकने के लिए कहे जाने पर सभी यात्री ऐसा ही किए। मौसम थोड़ा साफ हुआ सभी लोग शाम 5.00 बजे चाय पिए। थोड़ी देर बाद टोमेटो सूप लिए। रात को आज रोटी, सब्जी खाये तत्पश्चात सोने का उपक्रम किए।


क्रमश: .....

डी.पी.तिवारी
रायपुर

1 comment:

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