पचीसवें दिन की यात्रा पाताल भुवनेश्वर के दर्शन : 12.08.2008

12.08.2008 श्रावण सुदी 11 मंगलवार


Photobucketसुबह 3.00 बजे मेरी नींद खुल गई प्रायः सभी यात्री जाग गए थे एवं यात्रा की तैयारी कर रहे थे। उसी समय चाय आ गई चाय पिया फिर नहाने की तैयारी किया। थोड़ी देर में स्नान भी कर लिया सुबह-सुबह हल्की ठण्ड लग रही थी किन्तु नहाने के बाद अच्छा भी लग रहा था। यात्रियों के लिए गेस्ट हाऊस कैम्पस में एक बड़ी बस एवं एक मिनी बस खड़ी हुई थी जिसमें सामान भी लद चुका था बस में जाकर सीट सुरक्षित किया एवं वापस डायनिंग हाॅल आकर बोर्नविटा पिया। सभी यात्री बोर्नविटा पीकर बस में बैठते जा रहे थे ठीक 5.30 बजे ‘‘ओम नमः शिवाय‘‘ के उद्घोष के साथ हमारी बस गेस्ट हाऊस से रवाना हुई। सुबह होने वाली है किन्तु आसमान में बदली होने व हल्की बुंदाबांदी होने के कारण हल्का अंधेरा भी है। हमारी बस धारचुला बस्ती से निकल कर पहाड़ी रास्ते से होकर आगे बढ़ रही थी पहाड़ी में काफी कोहरा छाया हुआ है चूंकि हम लोग काफी ऊचाई में सफर कर रहे है इसलिए कोहरा हमारे आसपास ही महसूस हो रहा है फिर भी लगातार बस की यात्रा जारी है। लगभग 9.00 बजे हमारी बस मिरथी गांव होते हुए वहां स्थित आईटीबीपी के मिरथी कैम्प में पहुंची। तब तक यहां हल्की धूप निकल आई है कैम्प में जवानों के द्वारा हम यात्रियों का स्वागत किया गया फिर पास ही बने एक भवन में हमें ले जाया गया, उक्त भवन के गेट के पास ही कुछ फोटोग्राफ्स लगे हुए हैं जिसे हम लोग देखे जिसमें हमारी कैलाश मानसरोवर यात्रा में जाते समय लिए गये स्वागत-सत्कार के फोटोग्राफस के अलावा सामूहिक फोटोग्राफ्स भी है। यात्रियों के लिये यहां नाश्ता का इंतजाम आईटीबीपी के द्वारा किया गया है, सभी यात्री यहां नाश्ता का आनन्द लिए, मैं केवल चाय पिया/नाश्ता उपरांत हमें हाल में बिठाया गया जहां सभी यात्रियों को कैलाश यात्रा एवं यात्रा के दौरान आईटीबीपी जवानों के द्वारा दी गई सहायता या असहयोग के बारे में फीड बैक देने हेतु फार्म दिया गया जिसे भरकर वही जमा किए।

Photobucket आईटीबीपी के कमाण्डरतथा लाईजिंग आफिसर श्री व्ही.पी. हरन द्वारा वहां सबको संबोधित किया गया। तत्पश्चात उसी कक्ष में प्रत्येक यात्री को समूह फोटो वितरित किया गया। इस प्रकार इस कैम्प में एक घंटा रूकने के पश्चात 10.00 बजे हम लोग जागेश्वर के लिए रवाना हुए। कैलाश यात्रा में जाते समय हम लोग अल्मोड़ा से मिरथी कैम्प आए थे किन्तु वापसी में हमारी यात्रा मिरथी कैम्प से अल्मोड़ा न जाकर दूसरे रास्ते से आज जागेश्वर पहुंचना है। पहाड़ी सकरे रास्ते से हमारी बस आगे बढ़ते जा रही थी रास्ते का दृश्य मनोहारी एवं अनुपम हैं सभी का आनन्द लेते हुए लगभग तीन घंटा लगातार सफर कर दोपहर एक बजें हम लोग पाताल भुवनेश्वर पहुंचे। बस से उतरकर सभी यात्री पैदल कुछ दूर चलकर पाताल भुवनेश्वर के पास पहुंचे। जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है पाताल अर्थात धरती के नीचे गुफा में भुवनेश्वर है। पहाड़ी के तल के नीचे गुफा में एक बार में 20-25 लोग ही जा सकते है। इसलिए हम लोग दो समूह बनाकर गुफा में बारी-बारी से प्रविष्ट हुए। चुंकि कुमाऊ मंडल विकास निगम के माध्यम से हम लोग वहां पर पहुंचे थे तथा कैलाश मानसरोवर परिक्रमा कर वापस आ रहे है,इसलिए अन्य यात्रियों को रोककर हमे पहले दर्शन करवाया गया। सतह से गुफा काफी गहरी एवं उतरने का रास्ता सकरा हैं जहां जनरेटर से प्रकाश व्यवस्था किया गया है। हम लोग कतार बद्ध होकर गुफा में प्रवेश करना प्रारंभ किए गुफा अत्यन्त सकरा एवं फिसलन युक्त है इसलिए लोहे का संकल लगाया है जिसे पकड़कर ही नीचे उतरना पड़ता है, लोहे के सांकल के सहारे गुफा में हम लोग उतरे जहां पर ढलान जैसा बना हुआ था कुछ देर बाद गाईड (पंडित जी) अन्य दर्शनार्थियों को लेकर और अंदर से दर्शन कराकर लौटे, ये दर्शनार्थी गुफा के बाहर, उसी रास्ते से बाहर की ओर जा रहे थे जिस सकरे रास्ते से हम लोग गुफा में नीचे उतरे थे। उनके जाने के बाद पंडित जी द्वारा हमें गुफा के बारे में तथा गुफा में उत्कीर्ण उभरे हुए स्थानों के बारे में बताते हुए गुफा में और अंदर ले जाकर बताया गया। गुफा में उभरे हुए जिन आकृति के बारे में पंडित जी द्वारा बताया गया वे मुख्यतः क्रमशः आदि गणेश, शेष नाग, ब्रम्हा, विष्णु महेश, कल्पवृक्ष, ऐरावत हाथी तथा शिवलिंग है। पाताल भुवनेश्वर नाथ बताया गया। शिवलिंग के पास ही एक कुण्ड है जिसमें पानी भरा हुआ है।

उसी पानी से तथा पूजन सामग्री से उनके द्वारा शिवलिंग का अभिषेक हम यात्रियों से कराया गया। जिसमें शिवलिंग स्थापित है वह ताम्रपत्र से सुरक्षित है जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा कैलाश दर्शन हेतु जाते समय कराया जाना बताया गया। गुफा में कुछ दूर और आगे जाने पर चार अलग-अलग रास्ते भी दिखाई दिए जिसे मानसरोवर व कैलाश जाने के लिए नजदीक एवं गुप्त मार्ग बताया गया, इस गुफा में पांडवों के आगमन की भी जानकारी दी गई इस प्रकार गुफा दर्शन पूर्ण कर हम लोग उसी सकरे चढ़ाई फिसलन वाले रास्ते से सांकल के सहारे चढ़कर गुफा के बाहर निकले। पाताल भुवनेश्वर दर्शन के बाद थोड़ा सा आगे आने पर कुमाऊ मण्डल विकास निगम के द्वारा संचालित रेस्टारेण्ट में यात्रियों के लिए दोपहर भोजन की व्यवस्था की गई थी जहां सभी यात्री भोजन किए चूंकि आज मेरा एकादशी व्रत है इसलिए मैं केवल ‘‘ककड़ी‘‘ ही ग्रहण किया। भोजनोपरान्त लगभग 2.30 बजे बस द्वारा पुनः रवाना हुए तीन चार घंटा यात्रा करने के पश्चात एक जगह रूककर चाय पिए थोड़ा सा टहलकर हाथ पैर सीधा किए। मोबाईल नेटवर्क में आ गया था घर बात किया एवं अन्य लोगो से भी बात किया। उसके बाद पुनः जागेश्वर के लिए रवाना हुए। रात्रि 9.30 बजे हम लोग बागेश्वर होते हुए जागेश्वर पहुंचे तब तक पानी गिरना प्रारंभ हो गया था, हमारी बस कुमाऊ मंडल विकास निगम के गेस्ट हाऊस कैम्पस में जाकर रूकी। पानी गिरने की वजह से ठण्ड बढ़ गई थी जल्दी से गेस्ट हाऊस में जाकर यात्रीगण कमरे में जाने लगे। हम लोग (मैं, राजनारायण, विक्रम, राजेश) एक ही कमरे में रूके । आधे घंटे बाद भोजन का बुलावा आया। चूंकि मंदिर रात्रि 9.00 बजे बंद हो जाती है इसलिए आज दर्शन नही हो सकेगा। इसलिए सभी यात्री नीचे डायनिंग हाल में आकर भोजन किए मैं भी साथ में आया केवल सलाद लिया। रात्रि भोजन कि दौरान ही श्री हरन द्वारा बताया गया कि मंदिर का पट प्रातः 4.00 बजे खुलेगा उस समय भगवान के दर्शन होगें इसलिए सभी यात्री 3.30 बजे तैयार होकर गेस्ट हाऊस के काऊण्टर के पास आ जाए। सभी लोग भोजन कर वापस आकर जल्दी अपने-अपने कमरें में सो गए।

क्रमश: .....

डी.पी.तिवारी
रायपुर

2 comments:

  1. पाताल भुवनेश्वर के दर्शन पाकर धन्य हुए।

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