सातवें दिन की यात्रा - 25.07.2008

25.07.2008 श्रावण बदी 7 शुक्रवार

Photobucketप्रातः 6.00 बजे चाय आ गयी। बूंदाबादी हो रही है। 6 यात्रियों का लगेज रात तक नहीं पहुंचा इसलिए प्रातः थोड़ा इंतजार कर प्रस्थान करना तय हुआ। आज हमें यहां से कालापानी तक यात्रा करनी है। कालापानी की दूरी 10 कि.मी. की है जो समुद्र सतह से 3600 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। कल हमें ब्रीफिंग के समय जानकारी दी गई कि गंुजी से चीन सीमा तक यात्रियों के साथ आगे-पीछे एवं बीच में आईटीबीपी के जवान चलेंगें। इमरजेंसी के लिये साथ में आक्सीजन सिलेंडर भी रखेंगें।

7.00 बजे नाश्ते के लिए बुलाया गया। आज नाश्ते में सुजी का हलवा एवं उत्तपम दिया गया। तबीयत ठीक लग रही थी इसलिए मैंने भी नाश्ता किया। बोर्नविटा भी लिया। 9.00 बजे तक बाकी 6 यात्रियों के लगेज का पता ही नहीं चल सका इसलिए आगे की यात्रा के लिए सभी यात्रियों ने प्रस्थान किया। लगभग 1 कि.मी. पैदल चलने के बाद मैंने घोड़े पर बैठ कर आगे की यात्रा की। जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे, हरियाली कम होते जा रही थी। केवल पत्थर चट्टान ही दिखाई दे रहा था। काली नदी के किनारे-किनारे चले जा रहे थे। रास्ते में 11.30 बजे लगभग आईटीबीपी के जवानों द्वारा आलू चिप्स एवं चाय की व्यवस्था की गई थी। यात्रीगण वहां पहुंचते जा रहे थे एवं चिप्स के साथ चाय का आनन्द ले रहे थे।

चाय लेने के बाद कुछ देर आगे बढ़ने पर ऊंचे पहाड़ी पर सूराखनुमा दिखाई पड़ रहा था जहां पर आईटीबीपी द्वारा पहचान हेतु झण्डा भी लगाया गया है। उक्त सुराख को ‘‘व्यास गुफा‘‘ बताया गया। दिल्ली के यात्री श्री विक्रम द्वारा साथ में ले जाए गए दूरबीन से उक्त गुफा को प्रायः सभी यात्रियों ने देखा। इसी गुफा में महामुनि व्यास द्वारा वर्षों तपस्या की गयी है, बताया गया और आगे बढ़नें पर कालापानी के 1 कि.मी. पहले काली नदी के किनारे गरम पानी के झरने का स्थान देखे जहां पर नहाने के लिए स्थान आदि भी बनाया गया है। लगभग दोपहर 1.30 बजे काली नदी में बने पुल से नदी पारकर कालापानी पहुंचे।


Photobucketजैसे ही पुल पार किए काली माता मंदिर जाने का रास्ता एवं कैम्प जाने का रास्ता पड़ता है। प्रायः सभी यात्री पोनी/पोर्टर को यही छोड़ काली माता मंदिर जाने के रास्ते में गए काली माता मंदिर के दर्शन किया। काली नदी के उद्गम स्थल कुण्ड जैसा है उसी के पास काली माता की प्रतिमा स्थापित हैं। कुण्ड एवं विग्रह दोनो गर्भगृह में है। गर्भगृह के बाहर हॉल है बाजू में कालीमाता मंदिर के गर्भगृह के बाजू में ही भोले बाबा शिव का भी मंदिर है। दोनों के लिए हॉल एक ही है। मंदिर के बाहर बड़ा सा कुण्ड बना हुआ है जिसमें मंदिर के अन्दर से पानी बहता हुआ आकर एकत्र होता है। फिर वही पानी बहते हुए आगे जाकर नदी में मिल जाता है यहां से यह नदी कालीनदी कहलाती है। बताया गया कि यह नदी 6 माह भारत सीमा में तथा 6 माह नेपाल में बहती है । मंदिर दर्शन के बाद लगभग दो बजे हम लोग कैम्प पहुंचे.

गुंजी में जिस क्रम में हम लोग रूके थे अर्थात सर्व श्री मस्करा, स्वयं तनेजा एवं विक्रम उसी क्रम में यहां भी रूके। हमारे डोम में 6 अन्य यात्री भी रूके। हाथ मुंह धोकर दोपहर का भोजन डायनिंग हाॅल में जाकर किए, यात्रियों से कहा गया कि भोजन उपरांत अपना पासपोर्ट इमीग्रेशन चेक के लिए जमा कर दे। सभी यात्री अपना-अपना पासपोर्ट लाइजिंग ऑफिसर के माध्यम से कैम्प अथारिटी के पास जमा कर दिया जो कि इमीग्रेशन चेक एवं हस्ताक्षर सील के बाद सबको पुनः शाम को वापस दे दिया गया। मौसम साफ था गुनगुनी धूप थी भोजन उपरांत विश्राम किए। शाम 5.00 बजे सेटेलाईट फोन से घर बात की। यात्रियों को सूप दिया गया। 5.30 बजे कालीमाता मंदिर गए। वहां रोज शाम को आईटीबीपी के जवानों के द्वारा भजन किया जाता है। जब भी कैलाश यात्री यहां रूकते है वे भी उनके साथ भजन में शामिल हो जाते है। काली नदी में आईटीबीपी द्वारा हायड्राल प्रोजेक्ट के द्वारा कालापानी कैम्प के लिए ही बिजली पैदा की जाती है इसलिए यहां बिजली की कोई समस्या नहीं है। मंदिर से वापस आकर रात्रि 9.00 बजे भोजन किया एवं सो गए।

क्रमश: .....

डी.पी.तिवारी, 
रायपुर

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