नवें दिन की यात्रा - 27.07.2008

27.07.2008 श्रावण बदी 9 रविवार

Photobucketनवीढ़ांग से ‘‘लिपुलेख पास‘‘ तिब्बत (चीन) सीमा की दूरी यद्यपि 7 कि.मी. ही है किंतु समुद्र सतह से 5334 मीटर (16500 फीट) ऊचाई में होने के कारण अत्यधिक ठंडी तथा तेज हवा चलती रहती है। इसके साथ ही भारतीय समय के अनुसार 5.30 बजे सुबह बार्डर पार करना निर्धारित होने से सभी यात्री यात्रा प्रारंभ करने के लिए रात्रि 1.30 बजे ही उठ गए। सभी को डोम में चाय लाकर दिया गया। रात को हल्की बारिश हुई है अभी भी बूंदा-बांदी हो रही है जिसके कारण मौसम एकदम सर्द हो गया है मौसम को देखते हुए गर्म कपड़े पहनकर पैदल यात्री ठीक रात को 2.00 बजे ‘‘ओम नमः शिवाय‘‘ के उद्घोष के साथ रवाना हुये। घोड़े वाले यात्रियों को 3.00 बजे रवाना होना है। इसलिए मैं भी मेरे पास उपलब्ध अधिकतर गर्म कपड़े (इनर, बनियान, बनियान, फूलइनर, फूलस्वेटर, ट्रेक सूट, विंडचिटर, रेनकोट, ऊनी दस्ताना, चमड़े का दस्ताना, सूती मोजा, ऊनी मोजा, मफलर, मंकी कैप) पहनकर तैयार हुआ। मेरा पोर्टर राजेश आ गया उसे बताया गया कि गर्म कपड़ा निकालकर लगेज पुनः पैक कर दिया हूं जिसे खच्चर में ढ़ोया जाना है । उसे वह उस स्थान पर छोड़ने के लिये ले गया है। वापस आ कर मेरा बैग ले लिया। पश्चात अन्य यात्रियों के साथ ‘‘ओम नमः शिवाय‘‘ के उद्घोष कर पैदल रवाना हुआ।

बाहर धुप्‍प अंधेरा है, रिमझिम बारिश हो रही है, सभी यात्री एक हाथ में लाठी एवं दूसरे हाथ में बड़ा टार्च लेकर चल रहे है, ऐसा लग रहा है जैसे रात में मशाल जूलूस निकला हो। थोड़ी देर पैदल चलने के बाद घोड़ेवाला मिल गया, जहां से मैं घोड़े में यात्रा शुरू किया । लगभग 1 घंटे के खड़ी चढ़ाई में चलने के बाद सभी यात्री रूके वहां पूर्व के पैदल यात्री भी पहुंच गये थे। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद पुनः सभी यात्री एकसाथ बार्डर की ओर रवाना हुए। जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे ठंड और हवा दोनों बढ़ती जा रही थी और सांस फूलने की वजह से रूक-रूककर पैदल चलना हो पा रहा था। लगभग सुबह 6.00 बजे हम लोग लिपुलेख पास (दर्रे) के पास पहुंचे अंधेरा छट गया था उजाला हो रहा था, टार्च की आवश्यकता नही रह गई थी, हमारे साथ चल रहे पोनी एवं पोर्टर यही पर रूक गये। उन्हे क्रमशः 3350.00 एवं 3300.00 रू. भुगतान किया एवं यात्रा से वापसी पर पुनः आने को कहकर पोर्टर से बैग लेकर मैं लिपुलेख सीमा की ओर बढ़ गया पथरीले रास्ते में जहां-तहां बर्फ जमा हुआ था। जिसे पार करते हुए सभी यात्री आगे बढ़ रहे थे। कुछ कदम चलने पर ही सांस भर जा रहा था। बार्डर पर पहुंचकर यात्रीगण थमते जा रहे थे। आईटीबीपी जवान तथा हमारे साथ चल रहे विदेश मंत्रालय के अधिकारी श्री हरन एकदम आगे पहुंचकर शेष यात्रियों का इंतजार कर रहे थे।

Photobucket10-15 मिनट में सभी 46 यात्री वहां पहुंच गये। उधर सीमा पर चीनी सैनिक एवं अधिकारी रेनकोट पहने हुए एवं छतरी लिये खढ़े होकर हमारा इंतजार कर रहे थे श्री हरन द्वारा चीनी अधिकारियों की कैलाश यात्रियों की सूची ग्रूप वीजा सहित सौंपा गया। चीनी अधिकारी के द्वारा अपना छोटा ब्रीफकेस खोलकर भी एक सूची निकाली गई जिससे इस सूची का मिलान किया गया। सूची में समान नाम होने पर सिर हिलाकर ओके किया गया। फिर सूची में उल्लेखित क्रम के अनुसार अनुक्रमांक और नाम पुकारा जाना लगा। तद्नुसार यात्रीगण आगे आते गये एवं अपना-अपना पासपोर्ट चीनी अधिकारियों को देकर आगे सीमा में प्रवेश करते गये। मेरा नाम उक्त सूची में दसवें क्रम में था। मेरा नं. आने पर मैं आगे बढ़ा, पासपोर्ट निकालकर मैं चीनी अधिकारी को सौंपा, पासपोर्ट खोलकर फोटो से चहेरा देखकर मिलान किया गया। तद्पश्चात पासपोर्ट पास ही खड़े एक अधिकारी के द्वारा रखे गये ब्रीफकेस में डालते हुए मुझे ओके कहकर आगे बढ़ने का इशारा किये । मैं जैसे ही आगे बढ़ा वहां पर खड़े चीनी सैनिकों एवं अधिकारियों द्वारा ‘‘ओम नमः शिवाय‘‘ के उद्घोष कर स्वागत किया गया। चीनी सीमा में पहुंचकर अन्य सब यात्री का इंतजार करते एक स्थान पर खड़े होते जा रहे थे।

हल्की बारिश के साथ स्नोफाल भी हो रहा था, जिससे ठंड और बढ़ गई इसी समय चीन के तरफ घोड़े में तथा उसके बाद पैदल ‘‘कैलाश मानसरोवर परिक्रमा‘‘ पूर्ण कर भारतीय यात्रीगण भारत सीमा में प्रवेश करने के लिये आते जा रहे थे। कुछ देर एक स्थान में खड़े रहने से ठंड से शरीर में कपकपाहट शुरू हो गई थी, इसलिये घोड़े का इंतजार न कर धीरे-धीरे पैदल ही आगे बढ़ना 7.30 बजे प्रारंभ किये । चीनी सीमा में यात्रा एकदम ढ़लान वाला है, रास्ता पूर्णताः पथरीला हैं, पेड़-पौधे आदि का नामो निशान नही है। बंजर पथरीला संकरा ढ़लान है, जिसमें कही-कही पर बर्फ जमा हुआ है। कैलाश मानसरोवर यात्री एवं उनके समान को लेकर घोड़े खच्चर वाले चीन तरफ से सीमा की ओर आ रहे थे। इसलिये तत्काल घोड़े मिलने की संभावना न देखर हम लोग पैदल लगभग 3 कि.मी. तक आगे आ गये। तब तक धूप भी निकल आया था। जिसके कारण कपकंपाने वाली ठंड कम हो गई थी किन्तु हवा बहुत तेज चल रही थी बार्डर से घोड़ो को खाली वापस आते हुए देखकर हम लोग धूप में ही एक स्थान पर बैठ गये बार्डर की ओर से कुछ घोड़ों में हम लोगो का लगेज लादकर चीनी पोनी आ रहे थे जो हमारे साथी यात्री जिनका क्रम आखिरी में बार्डर पार करने का आया वे वही से घोड़े में बैठकर आ रहे थे। हम लोग खाली घोड़ो के पास आते तक उसका इंतजार करते रहे, जैसे घोड़े आते गये हम लोग सवार होकर आगे बढ़ते गये।

Photobucketघोड़ों के द्वारा लगभग 4 कि.मी. चलने के बाद उस स्थान पर पहुंचे जहां पर खाली बस हमारा इंतजार कर रही थी एक बड़ी बस एवं लैण्ड कजर जीप में समान सहित सवार होकर हम लोग रवाना हुए लगभग 8-10 कि.मी. उबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते में बस द्वारा सफर करने के बाद हमारी बस चीनी सेना के कैम्प के पास पहुंची चीनी अधिकारियों द्वारा उतरकर वहां औपचारिकता पूर्ण की गई तत्पश्चात हमारी बस पुनः रवाना हुई। कुछ देर में लगभग 11.30 बजे हम लोग एक शहर में पहुंचे जिसका नाम तकलाकोट (पुरंग) है यह चीन (तिब्बत) सीमा का एक छोटा शहर है। हमारी बस एक कैम्पस में दाखिल हुई सामान आदि उतारकर हम लोग हॉल में पहुंचे। कुछ देर में हमें उक्त गेस्ट हाऊस में कमरा आबंटित किया गया। रूम नं. 204 में मैं और श्री राजनारायण मस्करा रूके। जहां हमें रूकवाया गया वह गेस्ट हाऊस काफी अच्छा है। सभी रूम अटैच बाथरूम वाला है। जिसमें गीजर लगे हुए है। पहले मस्करा जी स्नान किए पश्चात मैं स्नान (तीसरे दिन) किया। 11.45 बजे दोपहर भोजन का बुलावा आ गया। कपड़े बदलकर डायनिंग हॉल मे गए वहां सलाद, उबला हुआ चांवल व सूप रखा हुआ था। डिनर प्लेट/चम्मच लेकर यात्रीगण लाइन लगाकर चीनी महिला कर्मचारी द्वारा परोसे जा रहे लंच लेकर डायनिंग टेबल में बैठकर भोजन किये। लंच के दौरान बताया गया कि इमीग्रेशन फार्म भरकर अभी देना है। सभी यात्री लंच के बाद वही पर फार्म भर जमा किए। कुछ देर बाद हमारा पासपोर्ट वही डायनिंग हॉल में ही वापस मिल गया।

वापस कमरें में आकर सामान व्यवस्थित किए कुछ देर आराम करने के बाद गेस्ट हाऊस के बाहर आए। सड़क के दोनो ओर किनारे दुकाने बनी हुई है, सभी दुकानों में चीन भाषा में र्बोड लगे हुए है। सभी दैनिक वस्तुओं की दुकानो के अलावा मटन मांस/विदेशी शराब के दुकान भी देखने को मिले। छोटे-छोटे दुकान भी देखने को मिले जहां पर केवल चीनी सामान ही दिखें। सर्वप्रथम मैं और मस्करा जी एस.टी.डी. गए वहां का मालिक तिब्बती है जो थोड़ा बहुत हिन्दी और अंग्रेजी समझता है बाकी इशारे से बात हुई हम लोग अपने-अपने घर बात किए इसके अलावा एक दो जगह और बात किए। यहां टेलफोन से बात करने का चार्ज प्रतिमिनट 20.00 रू. लिया गया। यद्यपि यहां डॉलर अथवा येन (चीनी मुद्रा) स्वीकार किया जाता है किन्तु दुकानदार तिब्बती होने के वजह से तथा कैलाश यात्री भारतीय आते रहने के वजह से वह रूपये भी ले लिया। भारतीय रूपये 6.50 के बराबर एक येन चीनी मुद्रा यहां बताया गया। भारतीय समय से यहां का समय 2.30 घंटा आगे है। अभी भारतीय समय के अनुसार 4.00 बजे है तो चीनी समय के अनुसार 6.30 बज गए थे। श्री मस्कराजी द्वारा अपने घड़ी में चीनी समय के अनुसार मिलान किया गया। धूप थी किन्तु हवा ठण्डी थी रात को नींद पूरी नही हुई थी इसलिए हम लोग आराम करने के वजह से गेस्ट हाऊस वापस आ गए। लगभग सभी सहयात्री दोपहर के भोजन के बाद यहां के बाजार में घूम रहे थे। शाम 5.00 बजे (7.30 बजे) डिनर का बुलावा आ गया। नीचे डिनर हॉल में जाकर डिनर लिए थोड़ा सा टहलते हुए वापस कमरे में आए ।

कमरें की खिड़कियों में डबल कांच लगी हुई थी जिससे हवा कमरे में बिल्कुल नहीं आती। कमरा में पंखा नही लगा था खिड़की खोलने से तेज ठण्डी हवा का झोंका आया। इसलिए कांच बदंकर सोने की तैयारी किए। टी.वी. चालू करने पर चीनी भाषा में कार्यक्रम आ रहे थे किन्तु एक सप्ताह बाद ओलम्पिक की शुरूवात होने वाली थी इसलिए ओलम्पिक सम्बन्धित जानकारी देखते रहे। थोड़ी देर में नींद आ गई।

क्रमश: .....

डी.पी.तिवारी,
रायपुर

1 comment:

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