बारहवें दिन की यात्रा - यम द्वार पार कर श्री कैलाश पर्वत की ओर 30.07.2008

30.07.2008 श्रावण बदी 13 बुधवार


Photobucketसबेरे 5.30 बजे उठकर तैयार हुए। सभी यात्रियों का लगेज गेस्ट हाऊस के एक कमरें में ही रखा जा रहा था मैं भी अपना लगेज वही जाकर रख आया, चाय पिए। रास्ते के लिए तैयार किए गए बैग को लेकर बस में जा बैठा, ठीक 7.30 बजे बस आगे यात्रा के लिए रवाना हुई। हमारी बस पहाड़ी कच्चे रास्ते से होकर आगे बढ़ रही थी चारो तरफ सपाट बंजर भूमि नजर आ रही थी। दरचन से 10 कि.मी. आगे जाने के बाद बस रूक गई उस समय सुबह 9.00 बजे थे, हमें बताया गया कि बस इसके आग नहीं जाएगी, आगे का रास्ता पैदल एवं घोडे से तय करना होगा। सभी यात्री बस से उतर गए सामने मंदिरनुमा गेट बना हुआ था।

Photobucketइस स्थान का नाम ‘‘यमद्वार‘‘ बताया गया। मृत्यु के देवता यमराज के नाम से निर्मित यमद्वार को सभी यात्री पार किए अर्थात मृत्यु के देवता के पास से सकुशल पार कर मोक्ष दाता भगवान शिव के निवास स्थल ‘‘कैलाश‘‘ पर्वत के परिक्रमा हेतु आगे प्रस्थान किए। थोड़ी दूर पैदल चलने के बाद हम लोग 000000 ला-चू वॅली (घाटी) या भगवान के नदी की घाटी ; टमससमल व जीम त्पअमत व जीम हवकद्ध में प्रवेश किए। यहां पर हमें गाईड पोनी व पोर्टर मिले। यात्रियों के द्वारा अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार पोनी पोर्टर की मांग तकलाकोट में चीनी अधिकारियों को बता दिया गया था। उसी के अनुरूप यहां पोनी पोर्टर उपलब्ध थे। यात्रियों को पोनी एवं पोर्टर पर्ची (लॉट द्वारा) के माध्यम से मिलते जा रहे थे। मैं पोनी एवं पोर्टर दोनो मांग किया था इसलिए मेरे द्वारा दो (पोनी व पोर्टर) पर्ची निकाला गया। पर्ची के द्वारा पोनी मुझे श्रीजी तथा पोर्टर सोनल मिले। पोर्टर को बैग देकर मैं पोनी के सहयोग से उसके घोड़े में बैठ गया, उसके बाद पुनः हमारी कैलाश परिक्रमा यात्रा प्रारंभ हुई।
Photobucketयहां से हमे डेरापुक तक जाना है जिसकी दूरी 4 कि.मी. है तथा समुद्र सतह से 4890 मीटर ऊंचा है। लगभग दो घंटा यात्रा के बाद हम लोग एक स्थान पर चाय वगैरह पीने तथा क्षणिक विश्राम हेतु रूके। विगत दो घंटे के यात्रा के दरम्यान पुरा रास्ता हम लोग घाटी, नदी, पत्थर के चट्टान होकर गुजरे, चारो तरफ बर्फ से ढ़का हुआ पर्वत जो सूर्य प्रकाश पड़ने पर चमकता हुआ दिखाई पड़ रहा था रास्ते के दोनों ओर बाए एवं दाहिने ओर के पहाड़ी की चोटी बर्फ से ढकी हुई थी। इसलिए घाटी में बहने वाला हवा अत्यन्त ठण्डी थी। कुछ देर विश्राम करने के बाद पुनः यात्रा प्रारंभ किए और दोपहर 1.00 बजे के लगभग डेरापूक पहुंचे। यात्रियों के रूकने के लिए बनाए गए छोटे ऊंचाई के छत वाले मकानों में यात्रीगण रूकते जा रहे थे। हम लोग अर्थात मैं, मस्करा, विक्रम, तनेजा एवं रामशरन शर्मा जी एक ही कमरे मे रूके। पोर्टर से बैग लिया। वह जहां पोनी रूक रहे थे वहां जाकर रूका। जिस कमरे में हम लोग रूके उस कमरे की खिड़की से कैलाश के स्पष्ट दर्शन हो रहा था।

अलग टेण्ट में महिला यात्रियों के सहयोग से कुक द्वारा झटपट नाश्ता मैगी बनाने की तैयारी हो रही थी। मैगी का नाश्ता कर गुजरात के 8-10 यात्री पोरबंदर के श्री अशोक भाई के नेतृत्व में कैलाश दर्शन के लिए ऊपर पहाड़ी की ओर जा रहे थे। उन्ही के साथ राकेश जुनेजा एवं विक्रम भी जा रहे थे। लगभग 2.00 बजे चाय पीकर मैं व श्री राजनारायण जी भी उनके पीछे हो लिए। हमारे आगे-आगे आणन्द गुजरात के दम्पति भी चल रहे थे। हमारे कैम्प से ‘‘कैलाश पर्वत‘‘ नजदीक ही लग रहा था, जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे चढ़ाई भी खड़ी होती जा रही थी। साथ ही तेज ठण्डी हवा व धूप भी थी, कुछ दूर चढ़ने के बाद मेरी सांस फूलने लगी इसलिए रूक-रूक कर मैं आगे बढ़ने लगा।

हिमच्छादित कैलाश पर्वत में धूप पड़ने से बर्फ पिघलकर झरने के रूप में पहाड़ी के नीचे की ओर बह रही है जो क्रमशः आगे जाकर चौड़ी होती गई। इसमें बह रहा पानी अत्यन्त ठण्डा है। चढ़ते-रूकते अन्ततः मैं भी कैलाश पर्वत के समीप पहुंच गया। नजदीक से अवघड़ दानी, भूत भावन, भोले बाबा, शिव के वास स्थान ‘‘कैलाश पर्वत‘‘ का दर्शन, नमन एवं जल से आचमन कर धन्य महसूस किया। कैलाश के पास के चारो तरफ स्थित पर्वतों के शिखर पर बर्फ नही था केवल कैलाश के ही शिखर में बर्फ है लेकिन दूर स्थित सभी पर्वत श्रृखंला के शिखर बर्फ से ढके हुए है। कैलाश पर्वत के पत्थर ग्रेनाईट के सामान काले रंग है। शेष नजदीक के पहाड़ के पत्थर अलग किस्म के है।

Photobucket मौसम में अचानक बदलाव हुआ धूप के स्थान पर पानी गिरने जैसे बदली आ गई। मौसम के बदलाव को देखकर मैं, राजनारायणजी, जुनेजा एवं विक्रम धीर-धीरे वापस होने लगे। जाते समय चढ़ाई के कारण मैं थक गया था इसलिए उतरते समय अधिक सावधानी से पत्थरों पर पैर रखते हुए धीर-धीरे उतरा। हम लोग जब वापस आ रहे थे तो कुछ अन्य यात्री सहित श्री वी.पी. हरन भी नजदीक से कैलाश दर्शन हेतु मौसम का परवाह किए बिना ऊपर जाते हुए मिले। लगभग सायं 6.00 बजे हम लोग वापस कैम्प पहुंचे पानी गिरना भी प्रारंभ हो गया। जिसके कारण ठण्डी बढ़ गई। कमरे में आकर रजाई ओड़कर लेट गए एवं खिड़की से कैलाश पर्वत का दर्शन करते हुए बर्फ एवं पानी गिरते देखते रहे। मौसम खराब होने के कारण जो यात्री कैलाश पर्वत के नजदीक से दर्शन हेतु पहाड़ी में ऊपर गए थे वे भी जल्दी-जल्दी वापस आ गए। 7.00 बजे जनरेटर से प्रकाश व्यवस्था किया गया। पानी गिरते में ही डायनिंग (टेंट) में जाकर खिचड़ी खाए एवं वापस आकर रजाई में दुबककर पड़े रहे। पानी रात को भी गिरता रहा है।

क्रमश: .....

डी.पी.तिवारी,
रायपुर

1 comment:

  1. Thanks for sharing your experience .Kailash Yatra is one of the amazing tour .

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