10.08.2008 श्रावण सुदी 9 रविवार
आज हमें बुधी जाकर रूकना है, गुंजी से बुधी की दूरी अधिक होने से प्रातः 6.00 बजे ही यात्रियों को रवाना होने के निर्देश की वजह से सभी यात्री जल्दी उठ गए। मैं भी प्रातः 4.00 बजे उठ गया, नित्य क्रिया से निवृत हो चाय पिया तत्पश्चात यात्रा के लिए तैयार हुआ। सामान (लगेज) पुनः पैक किया एवं कुछ सामान अलग से बैग में रखा क्योकि अब हमारा लगेज एक दिन के बाद सीधा धारचुला में ही मिलेगा। मेरा पोर्टर आकर पैक किए गए लगेज को कुमाऊ मंडल विकास निगम द्वारा निर्धारित किए गए स्थान में छोड़कर आया जहां से उनके द्वारा सभी यात्रियों का लगेज एक साथ ढुलवाया जाएगा। 5.30 बजे जाकर नाश्ता (इडली, उपमा) किया एवं बोर्नबिटा लिया। 6.00 बजे ‘‘अन्नपूर्णा‘‘ पर्वत के दर्शन हुआ। सभी यात्री ‘‘अन्नपूर्णा मां‘‘ के दर्शन किए। सूर्योदय हो रहा है। सुबह की लालिमायुक्त किरणें अन्नपूर्णा पर्वत के शिखर पर पड़ रही है चूंकि शिखर हिमाच्छादित है। इसलिए सूर्य किरणे पड़ने से ऐसा दिखाई दे रहा है मानो पर्वत शिखर स्वर्णजटित हो। ‘‘ओम नमः शिवाय‘‘ के उद्घोष के बाद प्रातः 6.15 बजे गंुजी कैम्प से पैदल ही रवाना हुए क्योकि गुंजी गांव के पास से बहने वाली नदी में बनाए गए लकड़ी के पूल टूटने की जानकारी मिली है। नदी के उस पार जाकर गुंजी गांव पार किए।
गांव के सीमा के बाहर ही एक व्यक्ति भोजपत्र बेचते हुए बैठे मिला जिनसे यात्रीगण भोजपत्र खरीदें। थोड़ी दूर और पैदल चलने के बाद घोड़े वाला मिला उसके बाद मैं घोड़े से आगे की यात्रा जारी रखा, चूंकि सभी यात्रियों की घर वापसी हो रही थी इसलिए पैदल हो, चाहे घोड़े वाले यात्री हो सभी की गति सामान्य से कुछ ज्यादा ही थी। हम लोग 7.30 बजे गब्र्यांग चेक पोस्ट पहुंचे वहां पासपोर्ट की चेकिंग के बाद पंजी में प्रविष्टि की गई, चाय पीकर पुनः आगे बढ़े लगभग 9.00 बजे छियालेख चेक पोस्ट पहुंचे यहां पर भी आई.टी.बी.पी. के जवानों द्वारा पासपोर्ट चेक किया गया एवं इन्ट्री किया गया। मेरे साथ 2-4 यात्री ही वहां पर पहुंच पाए अर्थात हम लोग सबसे पहले पहुंचे। छियालेख से बुधी कैम्प का रास्ता पहाड़ी में खड़ी ढलान वाला होने से पैदल ही उतरना होता है। इसलिए मैं भी घोड़ा छोड़कर पैदल दिल्ली के यात्री श्री राकेश जुनेजा एवं बंगलोर के श्री शास्त्री जी के साथ उतरना प्रारंभ किया। लगभग दो घंटा पैदल (3 कि.मी. ढलान) चलने के बाद हम लोग बुधी कैम्प पहुंचे, कैम्प में पहुंचते ही रूकने का स्थान सुरक्षित किया। दोपहर के बारह बज रहे थे, हवा ठण्डी चल रही थी किन्तु धूप भी अच्छी तेज थी। इसलिए सबसे पहले मैं स्नान करने की तैयारी किया। पानी बहुत ठण्डा था फिर भी उसी में नहाया, नहाने के बाद बहुत हल्का एवं अच्छा महसूस किया। लगभग 1.00 बजे श्री राजनारायणजी भी पहुंचे उन्हें मेरे बाजू वाले स्थान में रूकवाया गया, वे भी स्नान किए। दोपहर दो बजे साथ में भोजन किए। बाहर ठण्डी हवा तेज चल रही थी इसलिए डोम के अन्दर ही विश्राम किए। रात्रि में प्रकाश व्यवस्था जनरेटर द्वारा किया गया। 6.00 बजे सूप दिया गया एवं 7.00 बजे भोजन के लिए बुलाया गया। रात्रि भोजन में चांवल, दाल, रोटी सब्जी, सेवई (मीठा) दिया गया। भोजन के दौरान ही यात्रियों को बताया गया कि कल हमें गाला न जाकर अन्य रास्ते से मंगती पहुंचना एवं वहां से बस द्वारा कल ही धारचुला पहुंचना है इसलिए कल पैदल यात्रा प्रातः 4.00 बजे तथा घोड़े वाले यात्री 5.30 बजे रवाना होगें। भोजन उपरांत रात्रि में 9.00 बजे मैं सो गया।
गांव के सीमा के बाहर ही एक व्यक्ति भोजपत्र बेचते हुए बैठे मिला जिनसे यात्रीगण भोजपत्र खरीदें। थोड़ी दूर और पैदल चलने के बाद घोड़े वाला मिला उसके बाद मैं घोड़े से आगे की यात्रा जारी रखा, चूंकि सभी यात्रियों की घर वापसी हो रही थी इसलिए पैदल हो, चाहे घोड़े वाले यात्री हो सभी की गति सामान्य से कुछ ज्यादा ही थी। हम लोग 7.30 बजे गब्र्यांग चेक पोस्ट पहुंचे वहां पासपोर्ट की चेकिंग के बाद पंजी में प्रविष्टि की गई, चाय पीकर पुनः आगे बढ़े लगभग 9.00 बजे छियालेख चेक पोस्ट पहुंचे यहां पर भी आई.टी.बी.पी. के जवानों द्वारा पासपोर्ट चेक किया गया एवं इन्ट्री किया गया। मेरे साथ 2-4 यात्री ही वहां पर पहुंच पाए अर्थात हम लोग सबसे पहले पहुंचे। छियालेख से बुधी कैम्प का रास्ता पहाड़ी में खड़ी ढलान वाला होने से पैदल ही उतरना होता है। इसलिए मैं भी घोड़ा छोड़कर पैदल दिल्ली के यात्री श्री राकेश जुनेजा एवं बंगलोर के श्री शास्त्री जी के साथ उतरना प्रारंभ किया। लगभग दो घंटा पैदल (3 कि.मी. ढलान) चलने के बाद हम लोग बुधी कैम्प पहुंचे, कैम्प में पहुंचते ही रूकने का स्थान सुरक्षित किया। दोपहर के बारह बज रहे थे, हवा ठण्डी चल रही थी किन्तु धूप भी अच्छी तेज थी। इसलिए सबसे पहले मैं स्नान करने की तैयारी किया। पानी बहुत ठण्डा था फिर भी उसी में नहाया, नहाने के बाद बहुत हल्का एवं अच्छा महसूस किया। लगभग 1.00 बजे श्री राजनारायणजी भी पहुंचे उन्हें मेरे बाजू वाले स्थान में रूकवाया गया, वे भी स्नान किए। दोपहर दो बजे साथ में भोजन किए। बाहर ठण्डी हवा तेज चल रही थी इसलिए डोम के अन्दर ही विश्राम किए। रात्रि में प्रकाश व्यवस्था जनरेटर द्वारा किया गया। 6.00 बजे सूप दिया गया एवं 7.00 बजे भोजन के लिए बुलाया गया। रात्रि भोजन में चांवल, दाल, रोटी सब्जी, सेवई (मीठा) दिया गया। भोजन के दौरान ही यात्रियों को बताया गया कि कल हमें गाला न जाकर अन्य रास्ते से मंगती पहुंचना एवं वहां से बस द्वारा कल ही धारचुला पहुंचना है इसलिए कल पैदल यात्रा प्रातः 4.00 बजे तथा घोड़े वाले यात्री 5.30 बजे रवाना होगें। भोजन उपरांत रात्रि में 9.00 बजे मैं सो गया।
क्रमश: .....
डी.पी.तिवारी
रायपुर
रोमांचक!!! साथ ही जाने को मन भी तैयर हो गया है।
ReplyDeleteआगे के वृतांत का इंतज़ार है।
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